उर्जा

सब उर्जा का खेल है . घात – प्रतिघात से ही सब चीजों का निर्माण हुआ है . कोई नियम eternal नहीं है , situational है . घात – प्रतिघात के सिलसिले में विकसित हो गये . हम उन्हें eternal समझते क्योंकि हम सत्तर साल ही जीते है और नियम पांच करोड़ साल . शायद eternal जैसा कुछ भी नहीं है .

ऐसी ही एक दिन धरती बन गई , धरती पर वायुमंडल बन गया , धरती पर पानी बन गया , धरती पर जीवन जैसा higher order का complex organism विकसित हुआ जिसके आधार में कार्बन अणुओं की बाॅडिंग है . हम मैटर ही है , जीवन मैटर ही है , बस एक अलग अवस्था है और इस विकास में करोड़ों साल लगे है .

biological body का निर्माण इसी सिलसिले में हुआ , ब्रेन बना , विचार और तर्क का जन्म हुआ . विचार ने आगे आत्मा – परमात्मा , स्वर्ग – नर्क बना लिये वैसे ही जैसे सामाजिक रिश्तें बना लिये . किसी चीज की कोई internal reality नहीं है . यही वास्तविक शून्यवाद है . सब reality भी assumed है .

जिनको भी आत्मा – परमात्मा का ग्यान हुआ है वे सब self – illusioned लोग है . सावन के गधे को हर जगह हरा ही नजर आता है .

कर्म का नियम भी तर्कणा की देन है पर अस्तित्व illogical है . उर्जा कर्म का नियम क्यों मानेगी ? इस तरह तो उसका मुक्त खेल बंद हो जायेगा ? उर्जा नहीं मानती , आदमी आस लगाये बैठा रहता है कि मानेगी .

99% अध्यात्म कल्पनाजाल के सिवा कुछ नहीं है. तुम्हारे सारे तथाकथित अनुभव कोई मायने नहीं रखते है .

मैं राहुल उर्जा का एक बंडल हूं .मैं कुत्ता भी हो सकता था पर मैं आदमी हूं क्योंकि मेरी उर्जा को आदमी के गर्भ में जगह मिली . आदमी होकर किसी भी सूरत में मैं कुत्ते से या इल्ली से बेहतर नहीं हूं .

मनुष्य जीवन पाना सौभाग्य, धर्म में रूचि होना सौभाग्य है , गुरू का मिलना सौभाग्य है , ये सब बनावटी बातें है . गुरू भी जिंदगीभर दूसरों के कंधों पर ही सवारी करता है . कई गुरू तो रेलवे का रिजर्वेशन फार्म तक नहीं भर सकते है . रोटी बना नहीं सकते , पंक्चर निकाल नहीं सकते है . कदम कदम पर शिष्यों की बैसाखी चाहिये उसे . मदारी को जमुरे और भीड की जरूरत होती है तब मजमा जमता है .

पहाड़ भी हँसते होंगे , नदी भी हँसती होगी कि मनुष्य जीवन पाना सौभाग्य की बात है . मनुष्य का ये superiority claim कोई मायने नहीं रखता है .

घात – प्रतिघात में तुम जन्में, घात प्रतिघात में तुम मर जाओगे .

by Rahul Rd

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