देख रहा इस भू तल में नित , देहिक मोह सदैव लुभाये !
राग भरा चित घोल रहा रस , स्वप्न मनोहर नैन चुराये !
भीड़ लगी सब वैभव कारण , रूप नशा रस गंध सुहाये !
बुद्ध महा गुरु छाँव मिले जब, प्राण विराट विखंडित भाये !!
छगन लाल गर्ग विज्ञ!
देख रहा इस भू तल में नित , देहिक मोह सदैव लुभाये !
राग भरा चित घोल रहा रस , स्वप्न मनोहर नैन चुराये !
भीड़ लगी सब वैभव कारण , रूप नशा रस गंध सुहाये !
बुद्ध महा गुरु छाँव मिले जब, प्राण विराट विखंडित भाये !!
छगन लाल गर्ग विज्ञ!