हर शै से रूठा करते हैं हर ‘शै’ में बगावत लगती है।


जब से  हम उनसे  बिछड़े हैं  ज़िंदगी शरारत  लगती है।
हर शै से रूठा करते  हैं हर ‘शै’  में  बगावत  लगती  है।

दिनभर मैं खुश रहता हूँ तो तू गुमान ना कर ऐ दिल सुन,
हर शब ऐ नादां दिल सुन  मेरे  लिये  मुसीबत  लगती है।

तेरे  कूचे  को  छोड़ा   हमने  जहाँ  गएँ  फिर   ऐ  साथी,
दिल कहता है चल चलते हैं ये ज़मीं क़यामत लगती है।

हो ऐसी हँसी जिसपर हमको  यकीं  रहे  धोखा  ना  हो,
हर आँखों में झाँका हमने आँसू की मिलावट लगती है।

सालों  से  ये  सुनते आएं  हैं  कि  ये  दवा  है  जीने  की,
चखकर देखा तो  मरने की ये दवा मुहाब्बत लगती है।

अब कोई भी मिलता है तो किस लिये मिलूं सोचूं पहले,
सारे झूठें लगते सबकुछ भी  दिखी दिखावट लगती है।

जिस मुश्किल से गुजरें ‘श्रेयस’ क्या कहें तुम्हें अब जाने दो,
सब  अपनों की  सच्ची  बातें  बे-दिली  कहावत  लगती हैं।

        ©संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

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