जब भी कोई रिश्ता निभाने को मिला।
हर शख़्स मुझको आज़माने को मिला।
वो सबसे सस्ती चीज़ जो बिकती नहीं,
बाज़ार में मैं यूँ जमाने को मिला।
उससे मिलूँगा मैं तो पूछूँगाँ कभी,
क्या तुमको मैं ही दिल दुखाने को मिला।
जब लग गया है दिल तो है ये सोचता,
किस बेरहम से दिल लगाने को मिला।
जिसने बना डाला महल अक्सर उसे,
ये आसमां ही सर छुपाने को मिला।
यूँ बोले तो था वो समंदर का शहर,
पर आग मेरे आशियाने को मिला।
हम आशिकों का हाल भी क्या पूछना,
जो भी मिला बेशक सताने को मिला।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस”