हरियाणा
हरियाणा की लोककलाएं
चित्रकला>भित्तिचित्र,
लोककला जो लुप्त होती जा रही हैं
लोक कला साहित्य वेट डॉक्टर सत्येंद्र ने लोक एवं लोक तत्व को परिभाषित करते हुए कहा है लोक मनुष्य समाज का वह वर्ग है जो अभी जाते संस्कार शास्त्रीयता और पांडित्य की चेतना अथवा पंडित के अहंकार से शून्य है और जो परंपरा के प्रभाव में जीवित रहता है।
डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है कि लोक शब्द का अर्थ जनपद या ग्राम में नहीं है बल्कि नगरों एवं गांव में फैली हुई वह समुचित जानता है जिनके व्यवहारिक ज्ञान का आधार पोथियाँ नहीं है।
डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल ने लोग को जीवन का समुद्र मानते हुए कहा है कि उसमें भूत भविष्य वर्तमान सभी कुछ संचित रहता है यह राष्ट्र का अमर स्वरूप है।
हरियाणा की लोक कलाएं
लोक कथाओं की दृष्टि से हरियाणा प्राचीन काल सर की समृद्ध रहा है इस प्रदेश में उत्खनन और प्राचीन साहित्य से उपलब्ध साक्ष के आधार पर कहा जा सकता है की भित्ति चित्रांकन की परंपरा उत्तर वैदिक काल से शुरू होकर महाभारत काल तक सतत जारी रही।
हरियाणा की लोक कला को हम विभिन्न भागों में बाँट सकते हैं, भित्ति चित्रण गृह सज्जा,मांडनाकलां सांझी कला, मृणमूर्तियाँ,मिट्टी के खिलौने,कुंभ कला किंवाड़ कला,हस्त कसीदाकारी वह अन्य लोक कलाएं।
हरियाणा एक कृषि प्रधान राज्य है, इसलिए महिलाएँ भी खेतों में पुरुषों के साथ काम करती हैं; इसलिए शिल्प कला के रूप में विकसित नहीं हो पाए हैं और अपने मूल उपयोग में ही जड़ जमाए हुए हैं। फिर भी, कला और शिल्प सच्चे कला पारखी लोगों को आकर्षित करना कभी बंद नहीं करते।
हरियाणा की कला और शिल्प में मुख्य रूप से मिट्टी के बर्तन, कढ़ाई और बुनाई शामिल है। हरियाणा के रंग-बिरंगे फुलकारी दुपट्टे भारत और विदेशों में प्रसिद्ध हैं। हरियाणा की कला और शिल्प में फारसी और मुगल शैली की मूर्तिकला और भित्ति चित्र भी शामिल हैं। बुना हुआ फर्नीचर, कलात्मक शीट धातु का काम, लकड़ी के मनके बनाना, जरी और टीला जूती (चमड़े के जूते), लेस का काम, हड्डी की नक्काशी, लकड़ी की नक्काशी कुछ ऐसे कलात्मक शिल्प हैं जिनके लिए हरियाणा जाना जाता है।
हरियाणा हमेशा विभिन्न जनजातियों, आक्रमणकारियों, नस्लों, संस्कृतियों और धर्मों के लिए एक मिलन स्थल था, जो 2500 ईसा पूर्व में वापस जाता था, और यह चित्रकला की कई शैलियों के विलय का गवाह बना। मिट्टी के बर्तनों की खोज और उन पर काले और सफेद रंग में चित्रित डिजाइन सिसवाल साइट, इस राज्य में कला की पहली छाप हैं। मिताथल और बनावली स्थलों से यह भी पता चला है कि कला यहाँ मौजूद थी, लेकिन निश्चित रूप से दक्कन और दक्षिणी भारत की तुलना में बहुत छोटे पैमाने पर। चित्र मुख्य रूप से क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर रेखाओं में हैं, जिसमें पुष्प कला को थोड़ी अधिक रचनात्मकता आवंटित की गई है। हर्षवर्धन के शासनकाल के दौरान कला और चित्रकला पर कुछ समय के लिए विशेष ध्यान दिया गया क्योंकि राजा स्वयं एक प्रकार के चित्रकार थे।
हरियाणा में चित्रकला की उत्पत्ति
सिंधु युग से पूर्व शीशपाल युग की मिट्टी के बर्तनों पर सफेद और काले रंग से बनाई गई कई प्रकार के चित्रकारी देखने को मिलती है कल के हिसाब से यह अच्छी चित्रकारी है मिताथल और बनावली से खुदाई में मिली चीजों और बर्तनों पर काले रंग से पाट कर खड़ी या टेढ़ी-मेढ़ी रेखाओं से चित्र बनाए गए हैं इन बर्तनों पर फूल पत्तों के सुंदर चित्र भी बनाए गए हैं सेंधव कालीन इस चित्रकला में भाव को भाव की प्रगति और चित्रांकन की परिपक्वता देखते ही बनती है, खुदाई में मिले वैदिक काल के बर्तनों पर की गई चित्रकारी इतनी परिपक्व दिखाई नहीं देती लेकिन उत्तर वैदिक कालीन साहित्य से पता चलता है कि उसे समय की चित्रकला काफी अच्छी थी। चित्रकला में दक्षता होने की निशानी समझी जाती थी आगे चलकर हर्ष काल में चित्रकला में नए-नए प्रयोग हुए। महाकवि बाण ने तत्कालीन चित्रकला को उत्कृष्ट तिथि का वर्णन अपने गद्य में किया उन्होंने उस समय के श्रेष्ठ चित्रकारों, उनकी कलाकृतियों और महलों में बने भित्ति चित्रों का उल्लेख भी किया है, उपलब्ध साक्ष से यह भी ज्ञात होता है कि महाराज हर्ष स्वयं एक अच्छे चित्रकार थे।
हर्ष के पहले सामाजिक एवं राजनीतिक अव्यवस्था के कारण चित्रकला का हरास होता चला गया; लेकिन सुदूर गांव की हवेलियों में भित्तिचित्रों के रूप में चित्रकला पनपती रही, उत्तर मध्यकाल में जाकर यह काल प्रकाष्ठा पर पहुंची हुई दिखाई देती है।
आजादी के बाद विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में चित्रकला को विषय के रूप में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनने पर चित्रकला का खूब विकास हुआ और अनेक चित्रकार उभर कर सामने आए। हरियाणा बनने के बाद तो विभिन्न प्रकार के चित्रकला का और भी ज्यादा से ज्यादा विकास हुआ रोहतक,भिवानी, हिसार,कुरुक्षेत्र,गुड़गांव आदि स्थानों पर कई ऐसे कलाकार उभरे जिन्होंने हरियाणवी जीवन के उद्देश्य चित्र बनाएं और उनकी अनेक बार प्रदर्शनियां भी लगाई।
प्रथम भाग चित्रकला >भित्ति चित्रण
लोकतंत्र की दृष्टि से हरियाणा प्राचीन काल से ही सम्राट रहा है इस प्रदेश में हुए उत्खनन और प्राचीन साहित्य से उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर कहा जा सकता है कि भित्ति चित्रांकन की परंपरा उत्तर वैदिक काल से शुरू होकर महाभारत काल तक सतत जारी रही तत्पश्चात मौर्य शक और गुप्त वंशी शासकों के लगभग 400 वर्षों के दौरान यह कला उत्कर्ष पर पहुँची।
11वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विदेशी आक्रमणकरियों ने इस कला को भी भारी क्षति पहुंचाई इन हमलावरों ने सेठ साहूकारों की हवेलियों को हस्तगत करके भित्ति चित्रों पर सफेदी पूतवा कर उन्हें नष्ट कर दिया। मध्यकाल में जब भक्ति आंदोलन ने जोर पकड़ा तो भित्ति चित्रकारों ने फिर कमर कसी और मंदिरों नाथों के डेरे चौपालों की दीवारों पर पुनः चित्रांकन आरंभ हो गया।यहाँ से चलकर यह लोक कला सामंतो सेठ साहूकारों की हवेलियों में पहुंची और देखते ही देखते समस्त हरियाणा में फल-फूल गई। इसके बाद 16वीं सदी से लेकर 20वीं सदी के मध्य तक भित्ति चित्रांकन की इस कला का लोक मानस पर गहरा प्रभाव पड़ा यदि इस युग को भित्ति चित्रों का स्वर्ण युग कहे तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, इस युग में हरियाणा के प्राय हर गांव कस्बे और नगर में भित्ति चित्र परंपरा खूब फली फूली।निसंदेह इस प्रदेश के बागड़,बांगर,नरदक,खादर,अहिरवाल,मेवात आदि अंचलों के भित्ति चित्रों को विषय वस्तु में भिन्नता दिखाई देती है लेकिन चित्रांकन की लोक भावना स्पष्ट दिखाई देती है।
हरियाणा की हवेलियां चौपाल को बावड़ियों सरोवरों की बारहदरियों धर्मशालाओं ठाकुरों द्वारा शिवालों,मंदिरों,साधुओं के धाम,छतरीयों और चौपालों की दीवारों पर बने भित्ति चित्रों को देखकर पता चलता है कि यह चित्र जीवन जगत के हर पक्ष को दर्शाते हैं इनमें केवल धर्म पुराण मिथक और अध्यात्म का ही चित्रांकन नहीं हुआ है बल्कि राजश्री वैभव एवं पढ़ने के भी चित्र उतारे गए हैं यही नहीं हरियाणवी लोकजीवन और लोक परंपराओं को भी हर कोण, हर दृष्टि से चित्रित किया गया है, अवतारों कुल देवताओं एवं अन्य सभी देवी देवताओं को इन भित्ति चित्रों में सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है।
शिव,नंदी,गणेश,पार्वती,कार्तिकेय, विष्णु के 24 अवतार, राम दरबार, श्री कृष्ण की लीलाएं, राम विवाह, सिंह वाहिनी दुर्गा श्री कृष्ण के फिर महाभारत से जुड़ी घटनाएं, हनुमान जी की विभिन्न मुद्राएं, नाथ साधुओं की मुद्राएं, आदि के भित्ति चित्र इसकी गवाही देते हैं। पौराणिक संदर्भों की कहानियां लोक कथाओं आदि से जुड़े भित्ति चित्र भी खूब मिलते हैं, लोक जीवन से जुड़े भित्ति चित्रों का फलक काफी व्यापक है।
हल चलाता किसान, चरखा कातती महिला, खेत में जाता किसान, दाढ़ी बनाता नाई,दूध निकलता ग्वाला, दूध बिलौती महिला, पनघट पर पानी भरती महीलाएं, चूड़ी पहनती महिलाएं और मनिहारी चरस खींचते बैल, गायन करते लोग गायक, सांग करते सांगी,सारंगी वादक,नाचती महिलाएं,फाग़ खेलती महिलाएं,गांव का चौधरी,हुक्का पीते लोग दूध के मटकी ले जाती गुजरी, घुड़चड़ी का दृश्य, तेली का कोल्हू, शंकर बना बजना कनपड़ा साधु सपेरा नाटक मदारी मोर सांप की लड़ाई जाने कितने जीवन से जुड़े कितने विषयों का चित्रांकन हुआ है, अब भी हरियाणा के अनेक गांव कस्बे और शहरों में भित्ति चित्र देखे जा सकते हैं। भिती चित्रों के ऊपर लेखन एवं छायांकन में आधा जीवन लगा चुके जाने-माने विद्वान भाई रणवीर सिंह ने लगभग 300 गांव कस्बे और नगरों में भित्ति चित्र अभी मौजूद होने की पुष्टि की है।उनके अनुसार अकेले भिवानी शहर में लगभग 20000 भित्तिचित्र देखे जा सकते हैं रोहतक, भिवानी, झज्जर, कैथल,जिन, महेंद्रगढ़, कुरुक्षेत्र, रेवाड़ी, गुड़गांव, फरीदाबाद, पानीपत सोनीपत, यमुनानगर, हिसार, सिरसा आदि जिलों के विभिन्न गांव कस्बा और शहरों की हवेलियों चौपालु मैथ्यू मंदिरों छतरी आदि पर दीवारों पर बने भित्ति चित्र समय पे धूमिल कांतिहीन और रंग हीन हो कर नष्ट होते जा रहे हैं अतः इन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है।
राजा हर्ष के शासनकाल के दौरान कुछ समय के लिए कला और चित्रकला पर विशेष ध्यान दिया गया, क्योंकि राजा स्वयं एक चित्रकार और कला के पारखी थे। हर्ष की मृत्यु के बाद, राजपूतों के अधीन कुछ समय के लिए चित्रकला का विकास हुआ, लेकिन दिल्ली सल्तनत की स्थापना ने इस पर विराम लगा दिया। सुल्तानों को कला से कोई प्रेम नहीं था और वे युद्ध और लड़ाई लड़ने में व्यस्त थे और कला को कभी संरक्षण नहीं दिया।
मुगल साम्राज्य के शासनकाल के दौरान कला अपने चरम पर पहुंच गई। जहांगीर कला का संरक्षक था, और उसके शासन के दौरान फारसी चित्रकला शैली का प्रभाव भारतीय शैली से खुशी-खुशी प्रभावित था।
*प्रदर्शन पर कला*
गुड़गांव के मीरपुर में महाराजा तेज सिंह के महल की दीवारों को राजपूत शैली में किए गए चित्रों से सजाया गया है। दीवारों पर बने पैटर्न रामायण के दृश्यों को दर्शाते हैं। गुड़गांव में ‘मातृ मद की प्याऊ’ में पौराणिक पेंटिंग हैं, लेकिन ये धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। ‘अस्थल बोहर’ पेंटिंग भी राजपूत शैली में हैं, और उनका प्रभाव पंचकुला और पिंजौर में शिव मंदिरों, कौल में वेणुमाधव मंदिर, कैथल और पबनमा में मंदिरों, किलायत में कपिल मंदिर और सरसैंथ मंदिर में भी देखा जा सकता है।
पिंजौर में रंग महल की दीवार चित्रों से सजाया गया है, जो सीधे मुगल चित्रकारों के हाथों से एक मौलिकता है। अंबाला के जगाधरी में लाला बालक राम और लाला जमुना दास की समाधि हिंदू पौराणिक कथाओं से अपनी दीवार चित्रों के लिए प्रसिद्ध हैं। दोनों के प्रवेश द्वार भारी चित्रित ‘द्वारपालों’ से घिरे हुए हैं। समाधि के पास स्थित राजीवाला मंदिर भी अपने चित्रों में धार्मिक विषयों को समेटे हुए हैं। इसकी दीवारें, कक्ष और बरामदा जैन शैली के अधीन हैं, जबकि किला मुबारक, दो मंजिला मुगल संरचना पक्षियों और फूलों की छवियों से अलंकृत है।
कुरुक्षेत्र के भद्र काली मंदिर में धार्मिक विषय और भित्ति चित्र पूरे ढांचे में चल रहे हैं, जिसमें निचले सिरे की सीमा पर एक व्यापक फ्रिज है। दूसरी मंजिल भित्ति चित्रों से आच्छादित है, जैसा कि रानी चाँद कौर की हवेली (घर) और पिहोवा में श्री राम सीता का मंदिर और बाबा श्रवण नाथ का मंदिर है। पूरे हरियाणा में मंदिरों और पवित्र हिंदू स्थानों में समान चित्र हैं।
*सुलेख का विस्तृत उपयोग*
लिपि से प्रभावित फ़ारसी शैली ने भी प्रमुखता प्राप्त की, विशेष रूप से भित्ति चित्रों के साथ जिसमें फ़ारसी लिपि का स्वतंत्र रूप से उपयोग किया जाता है। विस्तृत विवरण केंद्रीय विषय बनाते हैं जिसके भीतर कुरान की आयतें सुलेख पद्धति का अनुसरण करते हुए विभिन्न प्रवाह शैलियों में लिखी जाती हैं।
मुगल पेंटिंग भी हिंदू मंदिरों में, विशेष रूप से कैथल, कलायत और रोहतक में दिखाई दीं। यहाँ भी विषयवस्तु पौराणिक कथाओं से बहुत अधिक प्रेरित है और इसमें नैतिक और आध्यात्मिक संदेश हैं। रोहतक में भी अनेक पेंटिंग्स मिली हैं, जो अब कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पाण्डुलिपि विभाग के कब्जे में हैं। नीले, गुलाबी, हरे, नारंगी और लाल रंग का उदार उपयोग इन चित्रों की सुंदरता को बढ़ाता है;जो मूल रूप से भगवान विष्णु और उनके अवतारों को दर्शाते हैं।
राज ख्यालिया
संदर्भ
डॉ• संतराम देसवाल द्वारा लिखित, एवं हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित पुस्तक हरियाणा :संस्कृति एवं कला।तस्वीर और इसमें कुछ अन्य जानकारियों के लिए गूगल(Google) का विशेष आभार।
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