“आज फिर तुम लेट से आई हो!.यह तुम्हारी रोज की आदत हो गई है, आज तुम वहीं दरवाजे के बाहर जमीन पर बैठकर पढ़ाई करो, तुम्हें याद रहना चाहिए कि वक्त पर क्लास में नहीं आने की सजा क्या होती है। तभी तुम अगले दिन से क्लास में वक्त से आया करोगी।”
विद्यार्थियों को बोर्ड पर पाइथागोरस थ्योरम समझा रहे मास्टर साहब ने साधना को देखते ही अपना फरमान सुना दिया था। साधना बिना कोई सफाई दिए चुपचाप क्लास के बाहर दरवाजे पर बैठकर नोटबुक निकाल ब्लैक बोर्ड पर चल रहे थ्योरम का फार्मूला लिखने में जुट गई थी।
असल में जबसे मास्टर साहब ने अपने कोचिंग का वह शाम के वक्त वाला नया बैच शुरू किया था। उस बैच में पढ़ाई करने आने वाले सभी छात्र छात्राएं वक्त पर क्लास में मौजूद होते थे। जबकि साधना एकमात्र अकेली ऐसी विद्यार्थी थी जो हर रोज क्लास ज्वाइन करने कुछ मिनट देर से आती थी।
मास्टर साहब कई दिनों से साधना का यह रवैया देख रहे थे। बार-बार वक्त पर आने की चेतावनी देने के बावजूद साधना आज फिर से क्लास में देर से पहुंची थी। साधना के इस रवैया को मास्टर साहब ने अपने चेतावनी की अवहेलना समझी और उसे सजा भी सुना दिया। पूरे डेढ़ घंटे के क्लास की पढ़ाई साधना ने दरवाजे के बाहर जमीन पर बैठकर उस दिन पूरी की। लेकिन क्लास खत्म होते ही मास्टर साहब ने साधना को अपने पास बुलाया।
“तुम जानती हो ना कि,.जब मैं क्लास में पढ़ा रहा होता हूंँ तब कक्षा के बीच में अगर कोई विद्यार्थी पहुंचता है तो मुझे आगे पढ़ाने में डिस्टरबेंस होती है!”
मास्टर साहब साधना को डांट रहे थे और साधना सर झुकाए चुपचाप खड़ी डांट सुन रही थी। पिछले कई दिनों से मास्टर साहब का मन हो रहा था कि साधना को अपने कोचिंग क्लास से बाहर निकाल दें। लेकिन बेहद साधारण से कपड़ों में बिना कोई तामझाम के उस कोचिंग सेंटर में अन्य छात्रों के साथ पढ़ाई करने आने वाली साधना हर एक कठिन से कठिन सवाल को सबसे पहले हल करती थी। इसलिए कई बार मन में विचार आने के बावजूद मास्टर साहब ने साधना को अपने कोचिंग सेंटर में आने से मना नहीं किया था। किंतु आज सभी छात्रों के सामने उसे सजा देने के बाद मास्टर साहब के मन में साधना के प्रति थोड़ी जिज्ञासा सी हो रही थी।
“मेरे बार-बार मना करने के बावजूद तुम हर रोज देर से क्लास में क्यों आती हो?”
साधना अभी भी चुप थी। पूरे इलाके में सबसे कम ट्यूशन फीस में बच्चों को पढ़ाने वाले मास्टर साहब को साधना की यह चुप्पी बेहद खल रही थी। बिना कोई जवाब दिए सर झुकाए सामने खड़ी साधना को देख मास्टर साहब का गुस्सा अब सातवें आसमान पर पहुंचने लगा था।
“अगर कल से तुम वक्त पर नहीं आई तो मैं तुम्हें अपने कोचिंग सेंटर से निकाल दूंगा!”
साधना अभी भी सर झुकाए खड़ी थी। लेकिन मास्टर साहब ने अपनी कुर्सी से उठते हुए उसे जोर डांटा।
“अब यहां खड़ी क्यों हो? जाती क्यों नहीं?”
“सर मुझे आप से एक बात कहनी थी!”
“हांँ कहो!”
काफी देर से साधना की तरफ से कोई सफाई सुनने का इंतजार कर रहे मास्टर साहब वापस अपनी कुर्सी पर बैठ गए थे।
“सर अगर आप इस क्लास का टाइम बदल देते तो मेरे लिए बहुत सुविधा हो जाती!”
“मैं कुछ समझा नहीं?”
“सर अगर यह क्लास आप शाम में लेने की जगह दोपहर में ले लेते तो मैं हर रोज क्लास में वक्त पर आ पाती!”
हर रोज क्लास में देर से आने वाली साधना मास्टर साहब को क्लास का वक्त बदलने की सलाह दे रही थी यह देख मास्टर साहब ने गुस्से में भरकर साधना को फटकार लगाई..
“सिर्फ एक विद्यार्थी की सुविधा के लिए मैं अपने कोचिंग क्लास का टाइम इधर से उधर नहीं कर सकता!.तुम्हें अगर क्लास में आना है तो टाइम पर आओ वरना तुम्हें मेरे क्लास में बीच में आने की कोई जरूरत नहीं है!”
साधना द्वारा क्लास का टाइम बदलने के सुझाव को एक सिरे से खारिज कर मास्टर साहब ने साधना को क्लासरूम से बाहर जाने का इशारा किया।
साधना धीरे से वापस मुड़ी और उस कोचिंग क्लास के बाहर दरवाजे पर जमीन पर बिखरे अपने कॉपी किताब समेटने लगी थी। साधना के चेहरे पर एक गहरी उदासी थी। वैसे भी साधना क्लास में मौजूद अन्य छात्र छात्राओं की तरह कभी बेवजह ना तो किसी से बात करती थी और ना ही कभी मुस्कुराती थी। लेकिन आज अचानक उसके चेहरे की आई वह गहरी उदासी मास्टर साहब को भी थोड़ी खटक रही थी। मास्टर साहब अपनी कुर्सी से उठकर दरवाजे के बाहर अपने कॉपी किताब समेट रही साधना के बिल्कुल नजदीक आ गए।
“तुम रहती कहां हो?”
“सर यहीं चौकी के बगल से दाएं हाथ की ओर एक गली जाती है! उसी गली में मेरा घर है।”
“तुम रहती तो यहीं बगल में हो! फिर हर रोज देर से क्यों आती हो?.आखिर तुम्हारी समस्या क्या है?”
मास्टर साहब का अपने प्रति थोड़ा नरम संवेदनशील रवैया देख साधना के आंखों में आंसू आ गए।
“सर!.मेरे पिताजी नहीं है!.मांँ बीमार रहती है,. सुबह और शाम के वक्त मुझे दूसरों के घर में बर्तन मांजने जाना होता है!.इसलिए क्लास के लिए आने में देर हो जाती है!”
साधना मास्टर साहब के सामने सर झुकाए खड़ी थी। लेकिन एक गरीब छात्रा का पढ़ाई के प्रति ललक और अपने काम के प्रति समर्पण देख मास्टर साहब नि:शब्द थे। अभी कुछ देर पहले साधना को अपने द्वारा कहे गए कठोर शब्दों पर उन्हें अचानक आत्मग्लानि सी होने लगी थी।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”