सबको सबकुछ रहबर नहीं देता

 

सबको  सबकुछ रहबर  नहीं देता
दिल   देता   है  तो  घर  नहीं  देता

कोई   मख़मल  पे  सो  नहीं  पाता
कुछ नींदो  को  बिस्तर  नहीं  देता

है हम पर रहमत भी  बहुत  करता
रब  हम  को   झोलीभर  नहीं  देता

सबकुछ मिलकर भी प्यास होती है
सबको  एक  सा दिलवर  नहीं देता

‘बेघर’  कुछ  तो  इंसाफ  करता  है
मौला   हरदम   ठोकर   नहीं  देता

                  ✍️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

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