यूँ दिल की दुनिया में आ के कभी वैसे कभी न जाता है कोई,
वो तो भूल गया है जैसे कि कोई बात भूल जाता है कोई।
हमसे पूछ ‘ना’ उसकी चालाकियों का जो सबब मिला वो था कैसा,
उसने हाथ मिलाया था इस कदर जैसे गले लगाता है कोई।
उनसे भी मिलिए वो लेके वतन सीने ‘में’ जो घुमा करते हैं यूँ,
जैसे वो विधुआ जिसको दूसरों से भी बचाकर खुद ‘ही’ नोच खाता है कोई।
ना यूँ तू जलवों का कर ज़िक्र सब धोखा ‘है’ चेहरे पे मत जाना,
होता यूँ ‘भी’ ‘है’ ग़म भरने के लिए जी भर ‘के’ मुस्कुराता है कोई।
हमको भी दरिया की हंसी दिखी तब ये यकीं हुआ आखिर ‘श्रेयस’,
नैनों की गलियों से कैसे यहाँ दिल का लहू बहाता है कोई।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’