यही है सच तिरा हो भी नहीं सकता।


यही है सच तिरा  हो भी  नहीं  सकता।

सितम है क्या तुझे खो भी नहीं सकता।


किसी की याद अब आती नहीं मुझको,

मैं कोई ख़्वाब  संजो भी  नहीं  सकता।


लगे ना  हाय  अब  तुमको  कही  मेरी,

मैं तेरी  याद  में  रो  भी  नहीं  सकता।


वहीं  तू मांग  मिल  जाए  दुआ  में  जो,

गगन में बीज तू  बो  भी  नहीं  सकता।


अभी  से  हार  के बैंठा  है  तो  सुन  ले,

सफ़र की लाश तू ढो भी  नहीं सकता।


जमाना दूर तुमसे कर  दे  है  मुमकिन,

ये हो सकता है पर हो भी नहीं सकता।


नहीं है दाग़  से  कम  इश्क़  ये  ‘बेघर’,

है ऐसा  दाग़  तू  धो  भी  नहीं  सकता।


               ©️संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’

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