कदाचित हो संभव तेरे बगैर मैं जी सकू
तो होगी ज़िंदगी पर ज़िंदगी में मैं नहीं।
तुम्हे क्या खबर कि कितने सागर उमड़ते हैं सीने में,
तुम्हे क्या खबर कि कितनी नदियाँ सूख जाती हैं आँखों में
मगर मैं अब नहीं रोता हूँ।
यह जानकर कि तुम्हे अब मेरी जरूरत नहीं
मैं हर रात चैन से सोता हूँ।
धड़कनों की पीर अधीर हो जाती है
अचानक हँसते-हँसते हँसी खो जाती है।
गुम जाता हूँ किन्ही ख़यालों में जो अपने न थे
सहम जाता हूँ किसी की आहट से जो न आएगी कभी।
मगर अब ख़्वाब कोई नहीं संजोता हूँ।
यह जनकर कि तुम्हे अब मेरी जरूरत नहीं,
मैं हर रात चैन से सोता हूँ।
मेरा दुःख मेरा संताप अब कविता नहीं,
मेरी कहानियाँ किसी की यादों के जंगल में खो गईं।
मेरी वीरानियों मेरी भावनाओं की कसम
तू सचमुच मेरे हृदय से दूर हो गई।
तू किसके साथ में खुश है,अब इन बातों को भी नहीं ढोता हूँ।
यह जानकर कि तुम्हे अब मेरी जरूरत नहीं,
मैं हर रात चैन से सोता हूँ।
तुम्हारे गीत गूँजते हैं अभी भी कानों में
तेरी यादों की थपकियाँ मुझे सुलाती हैं।
तिरोहित सौत तेरी तन्हाई है;जो आती है खूब सताती है।
मगर मैं दिल में नईं उम्मिदों का
बीज नहीं बोता हूँ।
यह जानकर कि तुम्हे अब मेरी जरूरत नहीं,
मैं हर रात चैन से सोता हूँ।
©️संदीप