तेरी मर्ज़ी है तेरी रज़ा है।
मैं वहीं हूँ जो तू चाहता है।
तेरे ही चाहने से है सबकुछ,
मेरा मुझ में बता और क्या है।
मौत जिस से बचाती है सबको,
ज़िंदगी बस वही हादसा है।
रास आई नहीं है मुहब्बत,
कौन कहता है तू बेवफ़ा है।
बीच तेरे मेरे अब है भी क्या,
एक धोखा हि तो बस बचा है।
ज़िंदगी बंदगी फिर मुहब्बत,
आदमी कितना कुछ सोचता है।
मैं उसे माफ कर तो दूँ लेकिन,
बात ये है कि वो भी ख़पा है।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस”