‘मिलान’

“पिछले महीने मैंने कुछ रुपए तुम्हें रखने को दिए थे!. वह रूपए तुम जल्दी से मुझे दे दो!.आज शनिवार है बैंक बंद होने से पहले मुझे वह रुपए बैंक में जमा करवाने हैं!”

झटपट कुर्ता पहन तैयार हो रहे जगदीश्वर जी ने अपनी पत्नी सावित्री की ओर देखा..

“वह रुपए तो आपने मुझे रजनीश के अगले सवेस्टर की फीस और उसके हॉस्टल का खर्च देने के लिए रखने को दिया था ना!”

“हांँ! हांँ! वही रुपए!”

रामेश्वर जी ने अपने बालों में कंघी फिराते हुए थोड़ी जल्दबाजी दिखाई।

“आज तो बैंक आधे दिन ही खुला रहेगा आप रुपए सोमवार को बैंक में जमा कर दीजिएगा!.इतनी भी क्या जल्दी है!”

घड़ी पर नजर डालते हुए सावित्री ने जगदीश्वर जी को समझाना चाहा। लेकिन जगदीश्वर जी ने सावित्री की बात काट दी..

“नहीं-नहीं सावित्री!.रुपए तो आज ही जमा करने होंगे!”

“ऐसी भी क्या जल्दबाजी हैं!.जरा मुझे भी तो पता चले!”

“सावित्री तुम समझने की कोशिश करो!.मुझे राजेश को रुपए भेजने हैं,.इसलिए मैं आज ही बैंक जाकर रुपए उसके खाते में जमा कर आता हूंँ!”

“आप रजनीश की पढ़ाई के लिए रखे रुपए राजेश के खाते में डालने जा रहे हैं!.आपकी अक्ल घास चरने गई है क्या!”

अचानक नाराज हो उठी अपनी पत्नी को जगदीश्वर जी ने समझाना चाहा..

“सावित्री तुम तो जानती ही हो शहर में रुपया ही सब कुछ होता है!.रहने के लिए किराए के मकान से लेकर पीने के लिए पानी तक वहां रुपए देकर ही मिलता है!”

“वह सब तो ठीक है जी!.लेकिन बेटे को पढ़ा लिखा कर इंजीनियर बनाने का क्या फायदा,.जब उसे शहर में रहने के लिए रुपए हमें घर से ही भेजने पड़े!”

“सावित्री तुम नहीं समझोगी!.शहर में हजार तरह के खर्च होते हैं!.और अब तो उसका विवाह भी हो गया है और बहू भी उसके साथ ही रहती है, खर्च तो वैसे भी बढ़ ही गया होगा!”

“खर्च-बर्च कुछ नहीं बढ़ा होगा जी!.यह सब हमारा बेटा हमारी बहू के सिखाने पर ही कर रहा है!”

“सावित्री तुम कहना क्या चाहती हो?”

“यही कि,.आप अपनी कमाई से राजेश के छोटे भाई रजनीश की पढ़ाई और उसके हॉस्टल का खर्च उठा रहे हैं यह सब देखकर आपकी बहू के कलेजे पर सांप लोट जाता है!.और वही राजेश को सिखाती रहती है कि वह भी आपसे झूठ-मूठ के खर्च जोड़कर,.अपनी परेशानी बता कर आपसे रुपए ऐंठता रहे।”

“यह तुम कैसी बातें कर रही हो सावित्री!”

“मैं सही कह रही हूंँ जी!.मेरी बड़ी बहन की बहू भी ऐसी ही हरकतें करती है,.और हर महीने बेचारे मेरे जीजाजी को अपने दोनों बेटों को अपनी पेंशन में से बराबर-बराबर रुपए भेजने पड़ते हैं,.मैं खूब समझती हूंँ आजकल की बहुओं की चालाकी!”

“नहीं सावित्री तुम कुछ नहीं समझती हो!.तुम बस दूसरों के घरों की झूठी-सच्ची कहानी सुनकर अपने घर परिवार में शंका के बीज बो रही हो!”

“आप यह बात इतने यकीन से कैसे कह सकते हैं?”

सावित्री का पारा अचानक सातवें आसमान पर चढ़ गया। लेकिन जगदीश्वर जी ने अपनी पत्नी को समझाना चाहा..

“देखो सावित्री!.कई घरों में बहुत सी बातें ऐसी होती है जो सिर्फ बाप-बेटे के बीच ही रह जाती है उसे किसी और को जानने की कोई खास जरूरत नहीं होती है,. लेकिन आज मैं तुम्हें बात बताना चाहता हूंँ जो मैंने आज तक तुमसे नहीं कहा है!”

“ऐसी कौन सी बात है जी?”

सावित्री हैरान हुई। लेकिन जगदीश्वर जी ने अपनी पत्नी को सच्चाई से रूबरू कराना जरूरी समझा..

“जबसे राजेश की नौकरी लगी थी तभी से वह अपने छोटे भाई रजनीश के पढ़ाई और उसके हॉस्टल में रहने का खर्च अपनी कमाई से उठाने लगा था!”

“लेकिन यह बात तो राजेश या बहू ने मुझे कभी नहीं बताया!”

सावित्री के आश्चर्य का ठिकाना न रहा लेकिन जगदीश्वर जी मुस्कुराए..

“बताने की कभी नौबत ही नहीं आई!.क्योंकी मैं रजनीश की पढ़ाई और हॉस्टल के खर्च के लिए हर महीने कुछ रुपए चुपचाप राजेश के ही बैंक खाते में जमा करवा देता हूंँ,.ताकि उसे कभी रुपयों कमी महसूस ना हो!”

अपने पति के मुंह से ऐसी सच्चाई सुनकर सावित्री को अपने कानों पर विश्वास करना मुश्किल सा हो रहा था। लेकिन जगदीश्वर जी ने अपनी बात पूरी की..

“किसी दूसरे के घर की कहानी से अपने घर की कहानी का मिलान करना हमेशा सही नहीं होता है सावित्री!. हमें हर हाल में अपने बच्चों को दिए संस्कारों पर भरोसा होना चाहिए।”

जगदीश्वर जी की बात सुनकर सावित्री को अपनी परवरिश पर गर्व हो रहा था लेकिन साथ ही साथ उसे अपनी छोटी सोच पर शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी।

                                                                                       पुष्पा कुमारी “पुष्प”

 

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