तूफ़ाँ आए ज़िंदगी में मुझे कोई ग़म नहीं,
माँ की दुआ काफ़ी है ता-उम्र मेरे लिए।
मैंने जब से जाना जहाँ को नज़दीकियों से,
सिर्फ़ उसे ही पाया मेरा खुदा अब मेरे लिए।
दुनिया के ऐस-ओ-आराम में भी नींद टूट जाती है,
वो मेरे माँ का फटा आँचल ही अच्छा है मेरे लिए।
ऐ खुदा बयाँ कर सकता नहीं अपने लफ़्ज़ों में,
कितनी रात जागी है वो तरक़्क़ी में मेरे लिए।
हम कमाने चले आए छोड़ उस माँ को अकेला,
जिसने ठुकराए है सारे ख़्वाब ता-उम्र मेरे लिए।
दूर हूँ सही वो रोज़ मुझे जी भर याद करती है,
किवाड़ों को खोलकर तकती है राह मेरे लिए।
-आशुतोष त्रिपाठी