मन के भाव बच्चे होते हैं

कहाँ मांगने जाओगे स्नेह भला उधार सखे!
मोम के पुतले भरे पड़े हैं पत्थर है संसार सखे।
सूखे पेड़ के नीचे बोलो कब मिलती है छाँव सखे!
एक ही मन में भरे पड़े हैं लाख,अनेकों गाँव सखे।
हर एक गाँव में ठीक से देखो खुद को अकेले पाओगे,
ऐसे हाल में बोलो प्रियवर किससे मिलने कहाँ जाओगे?
बहुत विकल हो जाओ जब तुम खुद को खुद सहला लेना,
मन के भाव बच्चें होते हैं, स्वयं इन्हें बहला लेना।

बहुत विचित्र हैं रीत यहाँ की बूझे बूझ न पाओगे,
बदले में दुत्कार मिलेगा जिसको गले लगाओगे।
सबका अपना-अपना मन है, मान लो जग ये ऐसा है।
किसमें देखते हो तुम खुद को, कौन तुम्हारे जैसा है?
किसपर है अधिकार तुम्हारा किससे आस लगाते हो?
वहीं काम करते हो फिर तुम जिसमें ठोकर खाते हो।
कोई कहता है तुमको निर्जन, तुम निर्जन ही कहला लेना,
मन के भाव बच्चे होते हैं, स्वयं इन्हें बहला लेना।

नदी कहो मिलकर किससे कब अपनी राह बनाती है!
सूरज की किरणें धरती पे अजर कहाँ रह पाती हैं।
सागर अपना लहर समेट खुद ही खुद में करता सफ़र,
आसमान अकेले ही स्वयं में नित दिन रहता है प्रखर।
नभ में तारे दिखे अनेक पर कोई किसी से मिलता क्या?
सूखी बंजर धरती पे कभी कमल का फूल खिलता क्या?
तुम रो लेना जी भर अकेले, खुद को अश्रु से नहला लेना,
मन के भाव बच्चे होते हैं, स्वयं इन्हें बहला लेना।

@ संदीप कुमार तिवारी बेघर

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