‘फिर उधार’
“रोहिणी जरा देखो तो!.मेरे मोबाइल पर किसका फोन आ रहा है!”
दफ्तर जाने के लिए तैयार होकर नाश्ता करने बैठे राजेश ने दूसरे कमरे में चार्ज पर लगे अपने मोबाइल की रिंगटोन सुनकर अपनी पत्नी रोहिणी को टोका।
रसोई में राजेश के लिए लंच का डब्बा तैयार कर रही रोहिणी रसोई का काम छोड़कर भीतर कमरे में चली गई। लेकिन मोबाइल पर डिस्प्ले हो रहा नंबर देख कॉल रिसीव किए बिना ही रोहिणी ने मोबाइल ला कर अपने पति राजेश के सामने मेज पर रख दिया..
नाश्ता खत्म कर चुके राजेश ने मोबाइल अपने हाथ में ले लिया। तभी अचानक उसके हाथ में थामें मोबाइल की घंटी दोबारा बज उठी..
राजेश के मोबाइल पर उसके बचपन के दोस्त गणेश का नंबर डिस्प्ले हो रहा था।
राजेश फोन रिसीव कर स्पीकर पर रखकर अपने पांव में मौजे पहनते हुए गणेश से बातें करने लगा..
“हेलो गणेश!..कैसे हो भाई! बहुत दिनों बाद तुमने मुझे याद किया है,.सब खैरियत तो है ना!”
“भाई राजेश मुझे कुछ रुपयों की जरूरत है!.तुम मुझे कुछ दिनों के लिए बीस हजार रुपए उधार दे दो,.जल्द ही वापस कर दूंगा।”
पोल्ट्री का बिजनेस करने वाला गणेश अपने दोस्त राजेश को फोन कर रुपए उधार मांग रहा था।
यह सुनकर वही रसोई में मौजूद रोहिणी के कान खड़े हो गए। असल में गणेश अपने दोस्तों से रुपए उधार लेकर अक्सर उन्हें उनके रुपए वापस करना भूल जाता था।
यही वजह थी कि उसके दोस्त उसे रुपए उधार देने से कतराते थे।
“भाई गणेश मैं तुम्हें रुपए उधार नहीं दे पाऊंगा!.तुम कहीं और से जुगाड़ कर लो!”
राजेश ने अपने दोस्त गणेश को टालना चाहा। लेकिन गणेश अपनी मजबूरी बता राजेश से चिरौरी करने लगा..
“भाई कहीं से रुपए जुगाड़ नहीं हो पा रहे हैं!. तभी तो हार थक कर मैंने बड़ी उम्मीद के साथ तुम्हें फोन लगाया है,.तू मेरी मदद कर दे यार !”
गणेश रुपए उधार पाने के लिए राजेश के सामने गिड़गिड़ा रहा था। लेकिन अपने दफ्तर के लिए निकलने को तैयार पांव में जूते डाल चुका राजेश चुप था।
असल में लगभग दस वर्ष पूर्व गणेश ने आज ही की तरह उस वक्त भी अपनी मजबूरी बताकर राजेश से दस हजार रुपए उधार मांगे थे।
लेकिन आज दस वर्ष बीत जाने के बावजूद गणेश ने उधार लिए वो रुपए राजेश को लौटाए नहीं थे। राजेश भी उस बात को लगभग भूल चुका था।
लेकिन आज अचानक फिर से गणेश रुपए उधार मांग रहा था। यही वजह थी कि,.राजेश अपने पास रुपए होते हुए भी गणेश को रुपए उधार देने से मना कर रहा था।
लेकिन दूसरी तरफ फोन पर मौजूद गणेश लगातार अपनी मजबूरी और हालात बयां कर रहा था..
“भाई पिछले महीने बिजनेस में बहुत ज्यादा घाटा हो गया!.पूंजी भी डूब गई है,. बस थोड़ी सी मदद कर दे!. मैं वादा करता हूंँ अगले महीने रुपए वापस कर दूंगा!.मुझ पर भरोसा कर यार!”
गणेश की बात गौर से सुन रहे राजेश से अब रहा नहीं गया..
“भाई मेरे पास तो फिलहाल तुम्हें उधार देने के लिए रुपए नहीं है! लेकिन अगर मैं तुम्हें किसी और से रुपए उधार दिलवा दूंगा तो तुम उन रुपयों को कब तक वापस करोगे?.बस इतना तुम मुझे बता दो,.फिर मैं कुछ सोचता हूंँ!”
“मैं रुपए अगले महीने ही वापस कर दूंगा।”
रुपए उधार मिलने की उम्मीद जगती देख गणेश की आवाज में उत्साह आ गया।
लेकिन राजेश ने उसे टोक दिया..
“नहीं ऐसा वादा तुम पहले भी करके तोड़ चुके हो! इसलिए सोच समझकर बताओ,.अगर मैं तुम्हें किसी से रुपए उधार दिलवा दूं तो तुम वह रुपए कितने दिनों में वापस करोगे!”
राजेश की बात सुनकर गणेश थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। लेकिन अगले ही पल कुछ सोचते हुए आत्मग्लानि से भर उठा..
“मुझे माफ कर दे भाई!.मैं भूल गया था!.मैंने तुम्हारा पिछला उधार नहीं चुकाया है शायद इसीलिए तुम मुझे रुपए उधार देने से इंकार कर रहे हो!”
गणेश की यादाश्त अचानक दुरुस्त होता देख राजेश ने उसे समझाया..
“भाई जिंदगी में एक बात याद रखना!.रुपए उधार मांग कर अपना काम करने के बाद उधार देने वाले को उसके रुपए वापस जरूर कर देने चाहिए!. लेकिन जो लोग रुपए उधार लेकर चुकाना भूल जाते हैं उन्हें दुबारा वक्त आने पर कोई मदद करने वाला नहीं मिलता! और यही वजह है कि,.लोग अपने दोस्त की मजबूरी में चाह कर भी उसकी मदद नहीं कर पाते हैं।”
अपने दोस्त राजेश की बातों का मर्म समझ चुका गणेश चुप था। लेकिन राजेश ने अपनी बात पूरी कि..
“मैं तुम्हें आज फिर से रुपए उधार दे रहा हूंँ!.लेकिन अगली बार उधार मांगने से पहले पिछला उधार चुकाने की कोशिश जरूर करना।”
यह कहते हुए राजेश ने अपने मोबाइल के फोन पे से गणेश को तुरंत बीस हजार रुपए उसके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर कर दिए।
अपने मोबाइल पर रुपए आने का मैसेज देख हर ओर से उधार मांग कर थक चुके गणेश की आंखें भर आई। वह अपनी करनी पर शर्मिंदा लेकिन अपने दोस्त के दरियादिली पर नि:शब्द था।
उधर अपने पति के द्वारा दोस्त को दोबारा रुपए उधार दिए जाने से हैरान रोहिणी दोपहर के भोजन का डब्बा राजेश को थमाते हुए पूछ बैठी..
“आपने उन्हें फिर से रुपए उधार क्यों दिए!”
“समझने की कोशिश करो रोहिणी!.मुसीबत में दोस्त ही दोस्त के काम आता है!”
“लेकिन जब रुपए देने ही थे तो उन्हें इतना सुनाने की जरूरत क्या थी?”
“जरूरत थी रोहिणी!.अपने दोस्त को सही राह दिखाना भी तो एक सच्चे दोस्त का ही काम होता है ना!”
अपनी पत्नी रोहिणी के हाथ से लंच का डब्बा ले स्कूटर स्टार्ट कर मुस्कुराते हुए राजेश दफ्तर की ओर निकल पड़ा।