प्यार कर के जुबां कर दे।
और हम सब गुनां कर दे।
जान जाती ‘है’ ना से भी,
जां रहे ना ‘वो’ हाँ कर दे।
शख़्स बस एक है जिसपर,
हम ‘तो’ खुद को फ़ना कर दे।
रात जब ओढ़ ले शबनम,
दिन जले ‘औ’ धुआं कर दे।
वो मिले तो गले लग कर,
कुछ ‘यूँ’ मेरे खुदा कर दे।
कुछ ‘तो’ है इश्क में ‘श्रेयस’
कौन खुद को तबा कर दे।
संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’