आज फिर से वो याद आया है।
नाम उसका लबों पे आया है।
जिस को अपना समझ रहा था मैं,
अब यकीं है कि वो पराया है।
एक लम्हे में सब गया मेरा,
ज़िंदगी भर में जो कमाया है।
कौन है जो ख़िताब दे मुझको,
मैंने पत्थर से दिल लगाया है।
धूप सबके लिए है दुनिया में,
और मेरे लिए तू साया है।
लापता हो गया था वर्षों से,
ग़म मिरा मुझ को ढूँढ लाया है।
देखिए रब़ जहाँ में ऐ साहब,
किस तरह हमको आज़माया है।
बात जिससे हुई हँसाने की,
खूब जी भर के वो रुलाया है।
जान जिसने लिया मिरा ‘बेघर’,
जान में उस को ही बसाया है।
©️संदीप कुमार तिवारी’श्रेयस’