जिस’का डर था बस वही लगने लगा।
तू मुझे फिर अजनबी लगने लगा।
हम अलग इतना लगे रहने कि फिर,
अब अकेले में भी जी लगने लगा।
मैं तिरे ग़म में हूँ आशुफ़्ता सही,
अधमरा सा तो तू भी लगने लगा।
कम नहीं था जो फ़रिश्तों से मुझे,
आज फिर से आदमी लग ने लगा।
छोड़ कर मैं दूर उससे हो गया,
इश्क़ जब से बेबसी लगने लगा।
मुब्तला तुम पे यूँ हो के मेरी जाँ,
आसमां था मैं जमीं लगने लगा।
लोग कहते हैं कि ‘बेघर’ आजकल,
तू जिधर था फिर वहीं लगने लगा।
©️संदीप कुमार तिवारी’बेघर’