ओ कलि कुसुम के भँवरे! क्यूँ भूल गया तू एक नहीं?
तू जिस फूल पे है उस पर निश्चित तेरा परिवेश नहीं!
जिस फूल के संग में तुमने जोड़ लिया अब नाता है,
वो तो है मधुमास लिए उसके अवतार हज़ारों हैं।
तुम जैसे यार हज़ारों हैं!
तू मुग्ध हुआ जिस रूप पे वो रूप किसी का सपना है।
अब रहने दे तू मान भी जा,ये भूल जा कोई अपना है।
बावरा मन तू जिसके लिए पागल होता ही जाता है,
प्रेम जगत के हाट में उसके खरीदार हज़ारों हैं।
तुम जैसे यार हज़ारों हैं!
मैं अंतःकरण की लहर,मुझमें खो जा व्याप्त हो जा।
जिसे बाहर ढूंढ रहा है तू,उसने तुमको कब समझा?
अब मैं कैसे समझाऊँ,क्या तुम्हे समझना आता है,
तेरा तो बस एक वही,उसके तो प्यार हज़ारों हैं।
तुम जैसे यार हज़ारों हैं|
-संदीप कुमार तिवारी