टूटे दिल के टुकड़ों का सारा पैग़ाम था आख़िर में।


टूटे दिल  के  टुकड़ों   का  सारा  पैग़ाम  था  आख़िर में।
हमने ख़त  को  देखा  उसमें  मेरा  नाम  था आख़िर  में।

मंज़िल   तक   तो  मेरी  भी  तैयारी  पहले  थी  जाने  की,
लेकिन   मेरी   गाड़ी   में   मेरा  सामान  था  आख़िर  में।

मीठी-मीठी बातो से इस दिल को जीत  के  तब  ज़ालिम,
तोड़ा था फिर दिल उसने मुझपर इल्ज़ाम था आख़िर में।

उसकी ख़ातिर घर भी छोड़ा  उसके ईश्क में सब छोड़ा,
मरने   पर   सबने   जाना   बंदा  नाकाम  था आख़िर  में।

कैसे  उसको  मैं अपना  कर  कोई   ग़ैर  का   हो  जाता,
यारो वो जो कुछ भी था दिल का अरमान था आख़िर में।

देखा   हूँ  मैं   मुझसे   पूछो   हर  इक   नाम   वाले    को,
जिसका जितना यश फैला उतना बदनाम था आख़िर में।

तुमने  ही   तो  चाहा   उसको   ‘श्रेयस’   भूल  तुम्हारी  है,
माना   तेरा   दिल   टूटा   ये  तेरा  काम  था  आख़िर  में।

          ©️संदीप कुमार तिवारी’श्रेयस’

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