देर तक आसमां बरसता है।
टूटकर जब कोई बिखरता है।
आ भी जाओ तुम्हें कसम मेरी,
तुमसे मिलने को जी तरसता है।
आज ज़िंदा हूँ कल नहीं शायद,
वक्त भी कब कहीं ठहरता है।
ईश्क़ में जो कभी बहक जाए,
आदमी फिर कहाँ सुधरता है।
गैर हो तुम ये जानता हूँ मै,
फिर भी ये दिल तुम्हीं पे मरता है।
एक ही शख़्स था जहाँ में क्या,
तू भी इंसाफ़ खूब करता है।
छीन कर आँख से उजाला रब़,
कौन किस्मत में रंग भरता है।
©️संदीप ‘;श्रेयस’