जीवन का सार ही यहीं है।
जीवन में सार ही नहीं है।
जिसे जीतने का सौक नहीं,
उसकी कोई हार ही नहीं है।
दुःख दो घड़ी की निराशा है।
सुख की अच्छी परिभाषा है।
संचित कर्मों का आकार ही नहीं है
तू भ्रमित है सिर्फ बीमार ही नही है
जहाँ डूब के हो पार हो जाना,
फिर वो तो मँझधार ही नही हैं।
कब क्या अच्छा कब क्या बुरा
हैं देश अनेक और एक धरा
प्यास बिना पानी का आधार ही नहीं है
म्यान बिना चमकती तलवार ही नहीं है
जो बीत रहा सब अच्छा है,
बिना अनुभव संसार ही नहीं है।
जीवन का सार ही यहीं है।
जीवन में सार ही नहीं है।
जिसे जितने का सौक नहीं,
उसकी कोई हार ही नहीं है।
©️संदीप🪔