जिगर में प्यास हो तो अच्छा लगता है।
समंदर साथ हो तो अच्छा लगता है।
चली जाना जिधर चाहो ऐ मेरी जाँ,
अभी तुम पास हो तो अच्छा लगता है।
नहीं चाहत हज़ारों हों मे रे अपने,
कोई भी ख़ास हो तो अच्छा लगता है।
कि मैं चुपचाप रहता हूँ तुम गुमसुम सी,
हमारी बात हो तो अच्छा लगता है।
सफ़र में साथ चलने दो तन्हाई भी,
किसी का साथ हो तो अच्छा लगता है
मैं तेरा अक्स हूँ तुम मेरी धड़कन हो,
यही जज़्बात हो तो अच्छा लगता है।
कि उसने ग़म दिया ‘श्रेयस’ तो ले लेना,
कोई सौगात हो तो अच्छा लगता है।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’