प्यार के ख़ुमार की पुकार भी चली गई।
चैन दिल के लूट के तू यार भी चली गई।
तू चली गई कहीं बदल गई है ये फ़ज़ा,
यार अब बसंत से बहार भी चली गई।
हम अभी तो ठीक से न रो सके भी टूट कर,
ये नदी बही नहीं कि धार भी चली गई।
मैं लड़ा कि तुम लड़ी थी इश्क की निबाह में,
जीत तो न हो सका कि हार भी चली गई।
झुक नहीं रहा हूँ मैं भी किसी के सामने,
अब किसी से प्रेम की गुहार भी चली गई।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’