गीत गाता चल

जो भी मिलता है,खो जाता है।
आँखों को धोखा हो जाता है।
ठेस लगने पे सजग होते हैं पाँव,
एक आदमी और फिर एक गाँव।
कईं दिनों तक मोल चुकाने के बाद,
जीवन समझ आता है बीत जाने के बाद।
पग-पग पे अपने को अहसास दिलाता चल!
कोई ना मेरा मैं ना किसी का गीत गाता चल।

दुनिया पत्थर है सब के लिए,
कौन रुकता है किसी के लिए?
तू चल रे बटोही रुकना संजोग,
मतलब के वास्ते मिलते हैं लोग।
हीरा के संग जौहरी सोना संग सुनार,
पैसा है सबकुछ यहाँ इंसा खरपतवार।
यहाँ ग़म हो या ख़ुशी बस मुस्कुराता चल,
कोई ना मेरा मैं ना किसी का गीत गाता चल।

ये आसमान के नीचे जो धरा है,
यहाँ खून चूसने की परंपरा है।
औरों से ख़ुशी की आस लगाओगे;
तुम पछताओगे, बहुत पछताओगे!
क्या सच बोल दू आदमी क्या करता है;
दूसरों के निवाले से अपना पेट भरता है।
उठ! भीतर से जाग तू, सबको जगाता चल।
कोई ना मेरा मै ना किसी का गीत गाता चल।

©️संदीप🪔

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *