वो ना मेरा था कभी
मुझसे था जुड़ा कभी
चल दिया जो छोड़ कर
दिल से दिल को जोड़ कर
दिल को मेरे तोड़ कर
मैं उसी की याद मे अश्रुजल बहाता हूँ
गीत उसका गाता हूँ।
छाँव बन के धूप में थकन मेरी मिटाता था
मेरी शितलता के लिए वृक्ष जो बन जाता था
मुझको कुछ अंनंत पथ के मंजिलों से जोड़ कर
चल दिया जो छोड़कर
दिल से दिल को जोड़ कर
दिल को मेरे तोड़ कर
मैं उसी की छाँव में पथिक बन सुस्ताता हूँ
गीत उसका गाता हूँ।
किस दिशा को जाना है मुझको वो बतलाता था
राह जब भटका कभी राह वो समझाता था
अब वो अपनी राह खुद ही मेरे पथ से मोड़ कर
चल दिया जो छोड़ कर
दिल को दिल से जोड़ कर
दिल को मेरे तोड़ कर।
अब मैं भटकूँ राह कोई खुद को खुद समझाता हूँ
गीत उसका गाता हूँ।
©️संदीप कुमार तिवारी