
ग़ज़ल लिखना सीखे भाग 18
आज हम ग़ज़ल लिखना भाग 18 से शुरू करेंगे। जैसा कि आप सभी को पता है पिछले दो-तीन भागों से हम ग़ज़ल के दोष को देख रहे हैं। आप सभी में जो पिछले भाग को नहीं पढ़े हैं यानी ग़ज़ल लिखना सीखे भाग 17 को जिन्होंने नहीं पढ़ा है उन सब से निवेदन है कि कृपया पहले पिछले भाग यानी ग़ज़ल लिखना सीखें भाग 17 एक बार अवश्य पढ़ ले और हो सके तो अगर आपने अभी कोई भाग नहीं पढ़ा है तो कृपया शुरू से इसको स्टार्ट करें तभी आपको अच्छा से समझ आएगा। तो चलिए हम ग़ज़ल के दोष में आज ग़ज़ल में होने वाले क़ाफ़िया का दोष देखेंगे।
ग़ज़ल में होने वाले क़ाफ़िया के दोष।
दोस्तों ग़ज़ल में क़ाफ़िया ग़ज़ल का मुख्य हिस्सा माना जाता है, ऐसा समझ लीजिए की ग़ज़ल का केंद्र बिंदु है क़ाफ़िया। अगर क़ाफ़िया ना हो तो ग़ज़ल अधूरी मानी जाती है।
ग़ज़ल में क़ाफ़िया को रखने के बाद यह एक विशेष प्रभाव छोड़ता है पाठक के हृदय पर इसलिए ग़ज़ल में अगर क़ाफ़िया ना हो तो ऐसा समझ लीजिए कि यह भी भंग रचना हो जाती है इसकी यह कोई वैल्यूएशन नहीं रह जाता।
अब इसमें यह भी बहुत सावधानी बरतनी पड़ती है कि आप कैसा क़ाफ़िया चुनते हैं किस तरह के क़ाफ़िया चलते हैं वह एक विशेष रूप से होना चाहिए और अचानक हृदय पर दस्तक देना चाहिए।
मैं आपको बता दूं की ग़ज़ल में होने वाले दोष में क़ाफ़िया का दोष एक ऐसा दोष है जिसके होने से ग़ज़ल के शे’र को ख़ारिज़ कर दिया जाता है।
लेकिन क़ाफ़िया के दोष को जानने से पहले कुछ विशेष प्रकार के तथ्यों को हम समझ लेते हैं फिर क़ाफ़िया के दोष को देखेंगे।
जैसा कि आप सभी ने पहले ही पढ़ लिया है कि हलंत वाले ऐसे अक्षर जो संयुक्त होकर दो की मात्रा को सूचित करते हैं और कुछ ऐसे अक्षर हैं जो ऐसे ही सिंगल रहते हुए एक की मात्रा को सूचित करते हैं, लेकिन कुछ ऐसे अक्षर हैं जिनको संयुक्त नहीं किया जाता और वह अपने आप में ही दो की मात्रा में रहते हैं।
अब क्योंकि हमें क़ाफ़िया का दोष देखना है तो मैं आपको बता दूं कि क़ाफ़िया के दोष देखने के लिए यहां कोई जरूरी नहीं है कि हर बार हम कोई असॴर या ग़ज़ल के शे’र पेश करें। यहां पर हम उसको नजरअंदाज करते हुए ऐसे ही आपको समझाने की कोशिश कर रहे हैं ।
1.अब इसमें पहला दोष है कि शे’र में काफिया का ना होना:– अगर ग़ज़ल में रदीफ़ ना हो तो भी उसे स्वीकार कर लिया जाता है, ऐसे ग़ज़ल को हम एक तरह से गैर मुरदफ़ ग़ज़ल भी कहते हैं परंतु शे’र में क़ाफ़िया रहना बेहद जरूरी है। अगर क़ाफ़िया ना हो तो उसको स्वीकार नहीं किया जा सकता उसके बाद उसे ख़ारिज़ कर दिया जाता है। आपकी ग़ज़लों के शेर कितने भी अच्छे क्यों ना हो, कितनी भी वजनदार क्यों ना हो लेकिन क़ाफ़िया के बगैर उसे हम ग़ज़ल का वजूद नहीं दे सकते।
जैसे एक शेर पेश है उदाहरण के रूप में 👇
जो जैसा है उसे वैसा कहा कर
अरे ओ आईने तू सच कहा कर
उपर्युक्त शे’र वीनस केसरी जी के एक किताब ग़ज़ल की बाबत से ली गई है जिसमें उन्होंने उदाहरण स्वरूप समझाते हुए इस शे’र का प्रयोग किया है। मुझे नहीं पता कि इस शेर को किसने लिखा है लेकिन मैं इसके उदाहरण से आपको यहां समझाने की कोशिश कर रहा हूॅं।
अब इस शे’र को गौर से पढ़िए! मतलब इस शे’र में रदीफ़ के पूर्व झूठा सा जो अल्फाज है हम क़ाफ़िया नहीं है। अर्थात इस मतले में क़ाफ़िया है ही नहीं। ऐसा समझ लीजिए इस शे’र को ग़ज़ल का मतला नहीं कहा जा सकता। इस शे’र को कैसे सुधार कर लिखा गया है आपको हम दिखाते हैं।👇
जो झूठा है उसे झूठा कहा कर।
अगर आईना है तो हक़ अदा कर।
देखिए ग़ज़ल लिखना कोई बड़ी बात नहीं है; लेकिन आप चीज़ों को कहां से कैसे इकट्ठा करके उसको कैसे समझ लेते हैं कितना बेहतर रूप से आप समझते हैं यह आपके ऊपर ही निर्भर करता है। बहुत सारी किताबें हैं बहुत सारे लोग आपको मिल जाएंगे अच्छे-अच्छे मशहूर शायर जिनको आप सुनकर उन्हें फॉलो कर के आप बहुत कुछ सीख सकते हैं लेकिन यह सब आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप उस चीज को कितना जल्दी सीख पाते हैं, कितना जल्दी उसे फॉलो कर पाते हैं। उनकी ग़ज़ल की बारीकियों को आप बार-बार पढ़े और बार-बार यह अपने शे’र जो आप लिख रहे हैं उसे उनसे कंपेयर करें यानी तुलना करें फिर आपको पता चलेगा कि आपसे क्या-क्या गलतियां हो रही है। आपके लिखे गए ग़ज़लों में क्या-क्या गलतियां हो रही है उस पर सुधार करें। मैं यहां पर संक्षिप्त में समझा दूंगा वैसे अगर ग़ज़ल के बाबत को समझाया जाए और इसके व्याकरण को समझाया जाए, इसकी व्याख्या की जाए, तो यह बहुत लंबा हो जाएगा। इतना आसान नहीं है क्योंकि बहुत सारे शायर बहुत सारे आलोचकों ने अलग-अलग तरीके से अलग-अलग ग़ज़ल के व्याकरण के अंगों के बारे में कहां है। शाखों के बारे में कहां है, सबका मत हर चीज के लिए एक जैसा नहीं है लेकिन सबको समझना और उस सारे समझ में से एक निचोड़ निकालकर अपने लिए कुछ नया तैयार करना ताकि आप उसी बुनियाद पर ग़ज़ल का महल खड़ा कर सके। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप कैसे कीजिएगा इसे।
ग़ज़ल में स्वर और व्यंजन के अक्षरों से संबंधित कुछ ऐसे भी दोष हैं जिनकी वजह से क़ाफ़िया खराब हो जाता है और इस खराब क़ाफ़िया की वजह से शे’र को ख़ारिज़ कर दिया जाता है बहुत सारे दोष इसमें आते हैं।
जैसे इक्वा दोष, सीनाद दोष, इक्फ़ा दोष, गुल्लू दोष, ईता दोष और भी बहुत सारे दोष हैं जिनकी चर्चा हम अगले भाग में करेंगे। यानी ग़ज़ल लिखना सीखे भाग 19 में इन सब की व्याख्या की जाएगी क्योंकि एक ही पोस्ट में इन सब की व्याख्या करना संभव नहीं है यह बहुत वृतांत रूप में है।
आज के लिए इतना ही मिलेंगे अगले भाग में ग़ज़ल लिखना सीखे भाग 19 में तब तक के लिए धन्यवाद नमस्कार जय हिंद। और हाॅं मैं आप सभी को बता दूं की ग़ज़ल में क़ाफ़िया का दोष अभी खत्म नहीं हुआ है, इसको बहुत विस्तार रूप से जाना जाएगा आज का जो पोस्ट था सिर्फ एक भूमिका थी आगे हम कम से कम दो तीन पोस्ट जरूर बनाएंगे जिसमें ग़ज़ल में काफिया के दोष को बारीकी से समझेंगे और यह समझना बहुत जरूरी भी है क़ाफ़िया का दोष बहुत-बहुत इंपॉर्टेंट दोष माना जाता है ग़ज़ल में। यह आपने सीख लिया तो समझ लीजिए लगभग अपने सारे दोष को कर लिया बाकी में कुछ छूट दिए गए हैं उसके अनुसार आप ग़ज़ल लिख सकते हैं कोई दिक्कत नहीं है।