ग़ज़ल कैसे लिखें?

                                   

 

पिछली बार हमने शायरी केसे लिखे ये बताया था।

शायरी कैसे लिखे

आज हम ग़ज़ल की चर्चा करेंगे या आप इसे ग़ज़ल की बाबत (व्याकरण) भी कह सकते हैं। दोस्तों बात जब ग़ज़ल की हो रही है तो मैं आपको बता दूँ कि ग़ज़ल कोई साधारण रचना नहीं, ग़ज़ल उर्दू काव्य की रूह है,इसके बिना उर्दू काव्य अपने-आप में अधूरा है। ग़ज़ल आज सिर्फ उर्दू ही नहीं बहुत सी जुबानों में कही जाने लगी है चाहे वो हिंदी,नेपाली,फारसी,संस्कृत ही क्यूँ न हो। मैं आपको बता दूँ कि ग़ज़ल की पूरी व्याख्या एक ही पोस्ट में करना संभव नहीं है।

अब आप चूकि जान चुके हैं ग़ज़ल की व्याख्या एक ही पोस्ट में संभव नहीं तो हम इसे एपिसोड में बांटते हैं,इसके लिए मैंने इसे दस(10) एपिसोड में बांटा है।जुड़े रहे हमारे साथ,एक भी एपिसोड मिस कीजिएगा तो ग़ज़ल के बारे में आपका ज्ञान अधूरा रह जाएगा। तो आइए पहला एपिसोड शुरु करें।

1. ग़ज़ल कैसे लिखे?

ग़ज़ल हमेशा एक लय में लिखी जाती है,आप इसे गा के लिखे तो और भी बेहतर होगा। हम यहाँ ग़ज़ल शास्त्र के बारे में जानने जा रहे हैं तो मैं आपको एक बात बता दूँ कि उक्त विषय के जो नियम पहले बनाये जा चुके हैं उनको ही लेखनीबद्ध किया जायेगा, हाँ! लेखक की प्रस्तुति ही विषय को अलग पहचान दिलाती है, परन्तु किसी लेखक की सोच और उसके मन्तव्य, शास्त्र के नियमों से छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं देते, इसीलिए यदि मैंने किन्हीं बिन्दुओं पर अपने मन्तव्य और अपनी विचारधारा प्रकट की है तो मेरी भरसक कोशिश रही है कि वह शास्त्र के नियमों और पाठकों पर आरोपित न लगें और स्पष्ट रहे कि उक्त विषय पर यह लेखक के अपने विचार हैं।

  • ग़ज़ल की भाषा

हिंदुस्तान में ग़ज़ल हमेशा दो भाषाओं में एक साथ पिरोई हुई मिलेगी वो भाषाएं हैं हिंदी और उर्दू,आप इन दोनो भाषाओं के मिश्रण को हिंदुस्तानी जुबान कह सकते हैं,तो आप यह कह सकते हैं कि यहाँ की ग़ज़ले हिंदुस्तानी जुबान में कही गईं हैं।

  • ग़ज़ल क्या है?

ग़ज़ल अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का एक ऐसा अंदाज़ है जिसे सुनकर सामनेवाला मंत्रमुग्द्ध हो जाए।ग़ज़ल शहद सा मिठास लिए एक ऐसा भावुकता का अहसास है; जो हृदय को स्पर्श कर सकता है तो दूसरी तरफ यह एक खंज़र सा उसे भेद भी सकता हैं। ग़ज़ल का सफ़र हज़ार वर्षों पुराना है,ग़ज़ल किसी महबूब द्वारा अपने महबूबा के लिए कहीं गई एक ऐसी जुबान हैं जिसे सुन कर वो मदहोश भी होती है तो कभी ज़ार-ज़ार भी।ग़ज़ल किसी दूर परदेश बैठे बेटे के द्वारा अपनी माँ के लिए कही गई वेदना है ;तो किसी माँ के द्वारा अपने बच्चे के लिए गाई हुई लोरी भी।ग़ज़ल के अनेक अंदाज़ हैं।कुल मिला के कहे तो ग़ज़ल हर भावनाओं की जूबान है जो अलग-अलग भाषाओं में लिखी और बोली जाती है। ग़ज़ल प्रेम रस भी है तो क्रांतिकारियों की आवाज़ भी।

  • ग़ज़ल की परिभाषा

ग़ज़ल एक समान रदीफ़ तथा अलग-अलग क़वाफ़ी में लिखी वो विधा है जो एक ही वज़्न अथवा बह्रर(मात्रा) में लिखे गए अश्आर का समूह बन जाती है,जिसके द्वारा शाइर अपने विचार,भावनाओं को प्रकट करता है।

  • शाइर– उर्दू काव्य लिखनेवाला

  • शाइरी-उर्दू काव्य लेखन

नोट:- ग़ज़ल लिखनेवाले को ग़ज़लगो कहते हैं और इसकी प्रक्रिया को ग़ज़लगोई कहते हैं।

  • शे’र– एक समान रदीफ़ जिसमें अलग-अलग क़वाफ़ी(क़फ़िया का बहुवचन)सुसज्जित होते हैं जो एक ही मात्रा मे लिखी गई किसी शाइर के अपने मौलिक विचार या चिंतन हो उसे शे’र कहते हैं।

नीचे उदाहरण स्वरूप एक शे’र प्रस्तूत है।

जब भी कोई रिश्ता  निभाने को मिला।

हर शख़्स मुझको आज़माने को मिला।

वो सबसे सस्ती  चीज़ जो बिकती नहीं,

बाज़ार   में  मैं  यूँ  जमाने   को  मिला।

  (©️संदीप कुमार तिवारी)

ग़ज़ल के एक शे’र को ‘फ़र्द’ कहते हैं और शे’र के प्रत्येक पंक्ति को मिस्रा कहते हैं।यहाँ मैं आपको बता दूँ कि शे’र की पहली पंक्ति को मिस्रा-ए-ऊला कहते हैं।ऊला(पहला)

प्रस्तूत है एक उदाहरण-

हँसाती नहीं भी रुलाती नहीं।-मिस्रा-ए-ऊला

वफ़ा की लगी दूर जाती नहीं।-मिस्रा-ए-सानी

         (©️संदीप कुमार तिवारी)

शे’र की दूसरी पंक्ति को मिस्रा-ए-सानी कहते हैं।सानी(दूसरा)

दो मिसरे आपस में मिल के मिसरैन कहलाते हैं।

  • गज़ल में रदीफ़ किसे कहते हैं?

रदीफ़ वह शब्द समूह है जो गज़ल का पहला शे’र जिसे मत्ला भी कहते हैं के दोनो मिस्रों के अंत में आता है।

उदाहरण-

तुमने देखा है कहीं भी एक हीं जैसा किसी को।

कब बदल दे कौन जाने है यहाँ पैसा किसी को।

वक्त मिलता भी नहीं रोने का मरने पे किसी के,

मैंने देखा है,  हुआ भी है कभी ऐसा किसी को।

         (-संदीप कुमार तिवारी)

प्रस्तूत अश’आर में *किसी को* रदीफ़ है।

  • क़ाफ़िया किसको कहते है?

वह शब्द जो शे’र में रदीफ़ के ठीक पहले आता हैं जो शे’र के तुकबंदी को बनाए रखता है उसे क़ाफ़िया कहते हैं।शे’र क़ाफ़िये पे ही टिका होता है।उदाहरण-

किस महूरत में दिन निकलता है।

शाम तक सिर्फ़ हाथ मलता है।

वक़्त की दिल्लगी के बारे में,

सोचता हूँ तो दिल दहलता है। (-बाल स्वरूप राही)

अब चूकि हम रदीफ़ को पहचान सकते हैं तो स्पष्ट है कि इस अश’आर में ‘है’ शब्द रदीफ़ है तथा उससे पहले आने वाले शब्द निकलता,मलता,दहलता सम तुकांत शब्द हैं और ये हर शे’र में बदल भी रहें हैं इसलिए ये शब्द (निकलता,मलता,दहलता)क़ाफ़िया हैं।

  • मत्ला किसे कहते हैं?

ग़ज़ल के पहले शे’र को मत्ला कहते हैं।

नोट:-यदि ग़ज़ल में मत्ला के बाद एक और मत्ला हो तो उसे हुस्ने मत्ला कहते हैं।

आज आतना ही,फिर मिलते हैं दूसरे एपिसोड में धन्यवाद।🙏

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