ग़ज़ल कैसे लिखे?

 

                                 

जाहिर सी बात है,आपको शायरी में दिलचस्पी है तभी आप यहा पें आए हैं,लेकिन आप लिखना भी चाहते हैं तो आप बिलकुल सही जगह आए हैं।एक बहुत पुरानी कहावत है कि “अगर आपको एक सफल लेखक बनना है तो एक सफल पाठक भी बनना होगा।जी हाँ अगर आप ग़ज़ल लिखने का सोच रहे हैं तो आपको ग़ज़ले पढ़नी भी चाहिए,आजकल तो इंटरनेट का जमाना है, कुछ पढ़ना हो तो हम गूगल भी कर सकते हैं।तो समय का ख़याल रखते हुए अब मुद्दे पे आते हैं,हमने ‘ग़ज़ल कैसे लिखे’ इस विषय पे पहले भी दो पोस्ट डाला हुआ है आपको उसे भी पढ़ना चाहिए।ग़ज़ल कैसे लिखे का पहला एपिसोड का लिंक हम नीचे दे रहे हैं कृप्या आप पहले उसे पढ़ ले ताकि यह पोस्ट आपको अच्छे से समझ आ जाए। 

  • ग़ज़ल-कैसे-लिखें-1
  • चूकि एक बार में ग़ज़ल की व्याख़्या करना मुमकिन नहीं है तो हमने इसे दस एपिसोड में बांट दिया है।तो शुरु करते है। पिछले पोस्ट में हमने ‘मत्ला किसे कहते हैं’ यहाँ तक बताया था।अब आते हैं तख़ल्लुस पे।

तख़ल्लुस किसे कहते हैं

 उर्दू काव्यों में कई बार देखा गया है कि लेखक रचना के अंत में अपनी नाम का प्रयोग करते हैं,ज्यादातर लेखकों के उपनाम भी होते हैं उनका ही प्रयोग करते हैं,इसी उपनाम के प्रयोग करने के प्रचलन को तख़ल्लुस कहते हैं।

उदाहरण में एक शे’र प्रस्तूत है।

दिल लूट के बेघर  मुझे  तू  कर  गया  पर  बात  सुन,

जो साथ चलने की कसम थी उस कसम को बांट दे।

©️संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’

इस शे’र में शाइर ने अपने तख़ल्लुस(उपनाम) ‘बेघर’ का प्रयोग किया है।पूरी ग़ज़ल मात्रा भार के साथ नीचे दी जा रही है।

ग़ज़ल*

2212 2212 2212 2212

जो कुछ मिला है प्यार में कहता है हम को बांट दे।

मुमकिन  नहीं  है आदमी ऐ  यार  ग़म  को बांट दे।

 

तुमने तो हम को दे  दिया चाहत भरे दिल में सितम,

लाज़िम नहीं है हम भी  लोगों में सितम को बांट दे।

 

क्यूँ रो रहा  है  यार तू  गुलशन  तुझे  मिल  ही  गया,

हर फूल अपने पास रख काँटो को हम को बांट दे।

 

क्या हो  जमाना  देख  ले  रुख़्सार  पे  पर्दा  तो  कर,

है  कौन  वो  दुनिया  में जो अपने  सनम को बांट दे।

 

दिल  लूट के  बेघर  मुझे तू  कर  गया  पर  बात सुन,

जो साथ चलने की कसम थी उस कसम को बांट दे।

©️संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’

गज़ल के आखिरी शे’र को मक़्ता कहते हैं उस शे’र में शाइर अपना उपनाम ‘तख़ल्लुस’ भी लिखता है। ग़ज़ल दो प्रकार से लिखी जाती है मुरद्दफ़ ग़ज़ल और ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल।जिसमें रदीफ़ होती है उसे मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं,जिसमे रदीफ़ नहीं होती उसे ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहते हैं। जैसे आपने ऊपर दी हुई ग़ज़ल को पढ़ा उसमे जब भी शे’र पूरा होता है उसके आखिरी में ‘बांट दे’ आता है यानी की उपर्युक्त ग़ज़ल मुरद्दफ़ ग़जल है और जिन ग़ज़लों में इस तरह का दुहराव हर शे’र में नहीं हो उसे ग़ैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल कहेंगे। इसमें भी अलग-अलग प्रकार होते हैं जैसे एक मुसलसल ग़ज़ल होती है एक ग़ैर मुसलसल भी होती है।

वैसे ग़ज़ल के प्रत्येक शे’र का अलग-अलग भाव होता है,लेकिन ग़र किसी ग़ज़ल के सारे अश’आर एक ही भाव के इर्द-गिर्द घूमते हों तो उस ग़ज़ल को मुसलसल ग़ज़ल कहते हैं और जिस ग़ज़ल के सभी शे’र अलग-अलग भाव को प्रकट करते हो तो उसे ग़ैर मुसलसल ग़ज़ल कहेंगे।अब आते हैं ग़ज़ल में मात्रा क्रम पे।

  • ग़ज़ल में मात्रा क्रम क्या है और यह कैसे गिना जाता है?

जैसे कि आप सभी जानते हैं कि हिदी मात्राएँ लघु(1) और दीर्घ (2)में गिनी जाती है उसी प्रकार ग़ज़ल में भी मात्राएँ लाम(लघु-1)और गाफ़(दीर्घ-2)में गिनी जाती है।फ़र्क सिर्फ इतना है कि हिंदी छंद शास्त्रों में मात्राएँ लिखने को आधार मानकर गिनी जाती है और ग़ज़ल में पढ़ने को आधार मानकर मात्राएँ गिनी जाती है। उर्दू छंद शास्त्र के जो घटक होते हैं उसे रुक्न कहते हैं जैसे हिंदी में यगण-222,तगण-221 होते हैं वैसे ही ग़ज़लों के भी अपने मात्राओं के कुछ नियम हैं और रुक्न जैसे-फाइलुन,फ़ाइलातुन,मुफ़ाईलुन आदि।

  • उर्दू काव्य में जो मात्रा क्रम कें घटक हैं उसे रुक्न कहते हैं,और इसके बहुवचन को अर्कान कहते हैं।

  • जिस मात्रा लय पे ग़ज़ल कही जाती है उसे बह्र कहते हैं।इनमें हैं-बह्र-ए-रमल,बह्र-ए-हज़ज,बह्र-ए-रजज़ और भी होते हैं।

  • रुक्न के मात्रा क्रम को तोड़े तो जो छोटी इकाई बनती है वो जुज़ है।

  • ग़ज़ल में मात्रा बढ़ाने या घटाने की प्रक्रिया हो ज़िहाफ़त कहते हैं,इसके घटने और बढने की क्रिया को ज़िहाफ़ कहते हैं।

  • ग़ज़ल में मात्रा गिनने की पूरी प्रक्रिया को तक़्तीअ कहते हैं।

  • उर्दू काव्य शैली के शब्दों में इज़ाफ़त भी होता है। जैसे- दर्ददिल को दर्द-ए-दिल लिखा जाना,नादान दिल को दिल-ए-नादाँ लिखा जाना इत्यादि।

नोट:- उर्दू शास्त्र में किन्ही दो शब्दों के बीच में अगर ‘व’,’और’,तथा जैसे शब्द हो तो उनका एक संक्षिप्त रुप भी लिखा जाता है जैसे-सुबह और शाम को हम सुब्ह-ओ-शाम भी लिख सकते हैं इस पद्धति को उर्दू काव्य में वाव-अत्फ़ कहते हैं।और एक नियम यह भी है कि शब्द के अंत में बिना मात्रा का व्यंजन आ रहा हो और उसके तुरंद बाद का शब्द दीर्घ स्वर से शुरु हो तो व्यंजन और स्वर को हम आपस में जोड़ भी सकते हैं।

जैसे:- श्याम आया=श्यामाया।

आज इतना ही,फिर मिलते हैं अगले एपिसोड में तबतक के लिए जय हिंद जय भारत।🇮🇳🙏

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