कौन जीता है यहाँ अब ज़िंदगी को।
यह तरक़्की खा गई है इस सदी को।
सब मशीनी कारवाई हो रही है,
आज दीमक लग रहे हैं आदमी को।
लोग तो बस फायदा ही हैं उठाते,
तुम कभी भी मत दिखा ना बेबसी को।
हो गया मालूम मुझको इश्क़ कर के,
हम ख़ुशी कहते रहे हैं खुदकुशी को।
हमको अंधेरो ने संभाला है ‘श्रेयस’,
शर्म आनी चाहिए थी रौशनी को।
©️संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’