वर्षों ह्रदय में पीर रहे हैं
अभी तो नैन से नीर बहे हैं
सोता जग जब मैं जगता हूँ
खुद को बोझ सा मैं लगता हूँ
कभी किसी की खुशी देखकर मन-ही-मन मुस्का लेता हूँ
किसी के दुःख में रोकर अपने उर की प्यास बुझा लेता हूँ
ऐसे फिर हालात को अपने फटे हाल में सी लेता हूँ
कहीं किसी में जी लेता हूँ।
मुझको जग ये बहुत रिझाता
नित नई-नई तरकिबें लाता
फिर जानबूझकर मैं फंसता हूँ
सब जानी-सुनी विवशता हूँ
मैं भँवरा नित नए फूल पे हंसता और इठला लेता हूँ
किसी की धुन को गीत बनाकर गा लेता बजा लेता हूँ
ऐसे फिर हालात को अपने फटे हाल में सी लेता हूँ
कहीं किसी में जी लेता हूँ ।
नहीं मुझे विश्वास किसी पर
नहीं मुझे है आस किसी पर
कौन यहाँ कब अपना होता
हर मतलब में छिपा है धोखा
फिर भी सब से मिलकर मैं भी खुद को उलझा लेता हूँ
समय बिताती है यह दुनिया मैं भी समय बिता लेता हूँ
ऐसे फिर हालात को अपने फटे हाल में सी लेता हूँ
कहीं किसी में जी लेता हूँ।
©संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’