कहाँ किसी पे कभी ऐतबार होता है।
कहाँ किसी का जमाने में यार होता है।
वो शौक या है जरूरत मिटा रहा कोई,
मुझे दिखाओ कहाँ अब भी प्यार होता है।
छुपा रहें हैं सभी अब लहू को आँखों में,
हसीं लबों से मगर ग़म उघार होता है।
हमें नहीं है ख़बर आज जहाँ में यारो,
कहाँ किसी का भी दिल बेकरार होता है।
कि रात थक के जहाँ सो गई उदासी में,
वहीं ये दिन सौ दफ़ा सोगवार होता है।
हमें पता है जो देती है धूल आँखों को,
उसी हवा पे यहाँ जां निसार होता है।
यहाँ-वहाँ की नही बात तुम करो ‘श्रेयस’,
पढ़ा लिखा मर्द घर में गवार होता है।
संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’