कविता हुई

ह्रदय के किसी कोने से निकली कोई आह, कविता हुई।
कोई मिलकर किसी से अधूरा रक्खा निबाह,कविता हुई।
किसी दम का जब दम मे दम घुट गया,
कोई उम्मीद का कलश चिटखकर टूट गया।
किसी ने प्रेम में झूठी दी सलाह, कविता हुई।

किसी को चाहकर चाह न कभी मिल सका
किसी तालाब में कमल न कभी खिल सका
किसी के भावनाओं को दूर तक ठेस पहुंचा
कोई मुसाफ़िर जब मंजिल पे लेट पहुंचा
किसी के प्यार में अधूरी रह गयी चाह, कविता हुई।

कभी चमन-बहार में सुन्दर-सुन्दर फूल खिलें
कभी अंधेरे को दीपक बिलकुल अनुकूल मिला
कभी किसी की बात समझ को ना समझा सकी
कभी कोई अंधेरी रात दिन को ना बहला सकी
किसी की तड़प ने दर्द को किया आगाह,कविता हुई।

कभी किसी के ज़ख़्म से अपना ज़ख़्म ताज़ा हुआ
कभी किसी की आँखों में अपनी आँखें भर आयीं
कभी कुछ अनकही बातें समझ में आ गयी
किसी की मुस्कान किसी का दिल बहला गयी
किसी की भूल जब बढ़ के हुई गुनाह,कविता हुई।

©संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’

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