एक ही दिल को कइ बार तोड़ा हमने।


नाम   से   तेरे   सौ   बार  तोड़ा   हमने
एक ही दिल को कइ बार तोड़ा हमने।

टूटती है इक  शै  रोज  अब  कमरे  में
साथ दिल के भी  घरबार  तोड़ा हमने।

जिस हवा के  आड़े जी रहे  थे  हम  यूँ
बस वहीं सांसों  का  तार  तोड़ा  हमने।

दिल  लगाए ना  हम फिर, कभी  वादा था
दिल से ही दिल का इक़रार तोड़ा हम ने।

क्या सितम है इस दिल को लगा के ‘श्रेयस’
और फिर दिल  का  आधार तोड़ा  हम  ने।

              ©संदीप कुमार तिवारी ‘श्रेयस’

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