एक कमरे में कर ले बसर।
और फिर तू उधर मैं इधर।
बा-वफ़ा गम भी तू खूब है,
साथ मेरे रहा उम्र भर।
मुझको तेरी जरूरत नहीं,
रूह में मेरे तू है मगर।
चल दिए तो न आएंगे फिर,
दिल यहाँ और कुछ पल ठहर।
दूर आ के पता है चला,
ये डगर भी गलत थी डगर।
रात ने मुझ से है ये कहा,
बेरहम होता है हर पहर।
इश्क श्रेयस नहीं अब मुझे,
दिल तुझे मरना है जा तू मर।
©️संदीप कुमार तिवारी’श्रेयस’