सोचते थे कि सदा उस को जवाँ देखेंगे।
उसकी आँखों में सजा के दो जहाँ देखेंगे।
देखते थे जो हमें खूब नज़र भर कर के,
अब जरूरत ही नहीं मुझ से कहाँ देखेंगे।
कोई भी मुझ को यकीं लाख दिलाए फिर भी,
जो मेरे दिल में है हम उस के निशाँ देखेंगे।
बात जब आज भरोसे की है तो रहने दो,
बस्तियाँ जलती रहे लोग धुआँ देखेंगे।
मौत जब मेरी कदम चूम रही होगी,
देखने वाले भी मेरी खुशियाँ देखेंगे।
©️संदीप ‘श्रेयस’