“माँ हम सब इस बार की गर्मी की छुट्टियों में शिमला जा रहे हैं! माँ आप भी हमारे साथ चलिए ना! मैं इनसे कह कर आपके लिए भी फ्लाइट का टिकट बुक करा लेती हूंँ! ” फोन पर अपनी मांँ से बातें कर रही सुरभि चहक रही थी।लेकिन दूसरी तरफ फोन पर मौजूद सुरभि की माँ शारदा जी ने साफ इनकार कर दिया। “नहीं नहीं बेटा! दामाद के रुपए खर्च करवाना अच्छा नहीं लगता,.तुम बच्चों के साथ घूम कर आओ मैं समझूंगी कि मैंने भी घूम लिया।” अपनी मांँ की बात सुनकर सुरभि थोड़ी देर के लिए चुप हो गई लेकिन कुछ सोचते हुए उसने अपनी मांँ से आखिर पूछ लिया.. “लेकिन माँ मन तो आपका भी करता ही होगा ना घूमने फिरने का?.भले ही आप किसी को बताती नहीं है,. लेकिन मुझे याद है आप पापा के साथ हम सबको लेकर हर बार गर्मी की छुट्टियों में कहीं ना कहीं घूमने जाया करती थी,. और मेरे पास तो उन दिनों की ढेरों तस्वीरें भी हैं!”
अपनी बेटी की बातें सुनकर बीते दिनों को याद करती शारदा जी हंस पड़ी.. “बेटा वह सब पहले की बातें हैं!.तुम भी कहां उन बातों को याद करने लगी,.अब ना तो अब तुम्हारे पापा रहें और ना ही वो दिन!” सुरभि ने महसूस किया कि उसकी मांँ की हंसी में भी एक गहरी उदासी थी। “अच्छा मांँ यह तो बताओ! भैया भाभी गर्मी की छुट्टियों में कहां जा रहे हैं कुछ पता है आपको?” “नहीं अब तक तो मुझे कुछ मालूम नहीं है!.वैसे भी वह दोनों तो अचानक उठते हैं और निकल पड़ते हैं छुट्टियां मनाने!” “आप उनके साथ ही कहीं घूमने क्यों नहीं चली जाती मांँ!.आपका कहीं घूमने का मन नहीं करता क्या?”
“मन तो करता है बेटा! लेकिन..”
“लेकिन क्या मांँ?”
“बेटा तुम्हारे भैया भाभी पूछते तो बात कुछ और होती!. खुद से इच्छा जताना अच्छा नहीं लगता,.लेकिन मैं यह भी जानती हूंँ कि वो मुझसे मेरी इच्छा कभी नहीं पूछेंगे।”
“लेकिन क्यों माँ?”
“बेटा इंसान को उसकी जिंदगी के बुरे वक्त में वही मिलता है जो उसने अपने अच्छे वक्त में दूसरों को दिया होता है!”
“माँ कुछ समझी नहीं?.आप कहना क्या चाहती हैं?”
“बेटा तुम्हें याद होगा जब हम गर्मी की छुट्टियों में कहीं बाहर घूमने जाते थे तब तुम्हारी दादी कभी हमारे साथ नहीं जाती थी!.हमारी किसी तस्वीर में वह कहीं नहीं होती थी!”
अपनी मांँ की बात सुनकर सुरभि सोच में पड़ गई कि आखिर उसकी मांँ उसे क्या बताना चाहती है!.लेकिन शारदा जी ने अपनी बात जारी रखी..
“बेटा तुम्हारी दादी का मन भी तो करता होगा ना हमारे साथ घूमने फिरने का! लेकिन उनके बेटे या बहू ने उनसे कभी इस विषय में नहीं पूछा इसीलिए आज मेरा बेटा या बहू मुझसे इस विषय में कुछ नहीं पूछते,.जो मैंने दिया है वही तो मैं पा रही हूंँ!”
फोन पर बातें कर रही मांँ बेटी के बीच थोड़ी देर के लिए एक सन्नाटा सा पसर गया। लेकिन भावुक स्वर में ही सही शारदा जी ने उस सन्नाटे को तोड़ा।
“खैरी यह सब बातें छोड़! यह बता तेरी सास तुम लोगों के साथ शिमला घूमने जा रही है या नहीं!”
अचानक अपनी मांँ का यह सवाल सुनकर सुरभि ने झटपट दो टूक जवाब दे दिया..
“नहीं मांँ!.वह हमारे साथ कहीं नहीं जाती हैं।”
“लेकिन क्यों बेटा?”
अभी-अभी अपनी मांँ को साथ लेकर शिमला घूमने जाने की बात कर रही बेटी का अपनी सास के प्रति ऐसा रुखा-सूखा रवैया देख शारदा जी हैरान थी। लेकिन सुरभि आगे बताने लगी।
“माँ आप मेरी सास को नहीं जानती!.उन्हें कभी हमारे साथ कहीं घूमने की इच्छा होती ही नहीं है!”
“यह बात उन्होंने कभी तुमसे खुद कही है?”
“नहीं माँ!.लेकिन अगर उन्हें हमारे साथ घूमने का मन होता तो कभी कहती तो सही! जब भी मैं कहीं बाहर घूमने का प्लान बनाती हूंँ तब आपके दामाद जी अपनी मांँ की इच्छा से उन्हें कुछ दिनों के लिए उनकी बेटी के घर पर रहने के लिए छोड़ आते हैं!.अब आप ही बताइए इसमें मैं क्या कर सकती हूंँ?”
“लेकिन बेटा तुम अपनी तरफ से एक बार कोशिश तो कर ही सकती हो!. क्योंकि यह भी तो हो सकता है कि वह भी मेरी तरह ही अपने बेटे या बहू के पूछने की राह देख रही हो!”
अपनी मांँ की हर बात सुनकर सुरभि सोच में पड़ गई लेकिन शारदा जी ने अपनी बात पूरी करते हुए अपनी बेटी को समझाया..
“एक बात याद रखना सुरभि!.अगर तुम मेरी तरह आज अपनी सास को अपनी खुशियों में शामिल नहीं करोगी तो कल तुम्हारे बच्चे भी तुम्हें अपनी खुशियों में शामिल करने से कतराएंगे!” शारदा जी अपनी बेटी को आपबीती बता रही थी। लेकिन सुरभि को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसकी मांँ उसे जिंदगी की सच्चाई से रूबरू करा रही थी।
-पुष्पा कुमारी “पुष्प”