आजाद अश’आर

कि जो इंसाफ़ से नहीं  मिलता।

किसी के बाप  से नहीं मिलता।


त’अल्लुक़  ईश्क  का ज़माने में,

मिरे  हालात  से   नहीं  मिलता।


ना मिलूं तुम से जब से ठानी है,

मैं अपने-आप से नहीं मिलता।


मुहब्बत ने दिया  है  दु:ख  ऐसा,

किसी संताप  से  नहीं  मिलता।


वफ़ा का जात भी मिला लेकिन,

तुम्हारी जात  से  नहीं  मिलता।


पसीने  और   खून  की  बरकत,

कभी  ख़ैरात  से  नहीं  मिलता।


नहीं  मालूम  था  कि वो  ‘बेघर’,

मुझे  ज़जबात  से नहीं मिलता।


              ©️संदीप कुमार तिवारी ‘बेघर’

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